रविवार, 30 अगस्त 2015

पशुपति नाथ मन्दिर (नेपाल)

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सावन ( आशुतोष ) मास के सताइसवें दिन में धर्म यात्रा के इस कड़ी मे हम आपको ले चलते है~ पशुपति नाथ मन्दिर (नेपाल) 
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पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव के पशुपति स्वरूप को समर्पित है। यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल भगवान पशुपतिनाथ का मंदिर नेपाल में शिव का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। यह मंदिर हिन्दू धर्म के आठ सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है। नेपाल में यह भगवान शिव का सबसे पवित्र मंदिर है।
पशुपतिनाथ में आस्थावानों (मुख्य रूप से हिंदुओं) को मंदिर परिसर में प्रवेश करने की अनुमति है। गैर हिंदू आगंतुकों बागमती नदी के दूसरे किनारे से इसे बाहर से देखने की अनुमति है। यह मंदिर नेपाल में शिव का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। १५ वीं सदिके राजा प्रताप मल्ल से शुरु हुई परंपरा है कि मंदिर में चार पुजारी (भट्ट) और एक मुख्य पुजारी (मूल-भट्ट) दक्षिण भारत के ब्राह्मणों में से रखे जाते हैं। पशुपतिनाथ में शिवरात्रि त्योहार विशेष महत्वके साथ मनाया जाता है।
किंवदंतियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था किंतु उपलब्ध ऐतिहासिक रिकॉर्ड 13वीं शताब्दी के ही हैं। इस मंदिर की कई नकलों का भी निर्माण हुआ है जिनमें भक्तपुर (1480), ललितपुर (1566) और बनारस (19वीं शताब्दी के प्रारंभ में) शामिल हैं। मूल मंदिर कई बार नष्ट हुआ। इसे वर्तमान स्वरूप नरेश भूपलेंद्र मल्लाने 1697 में प्रदान किया।
नेपाल महात्म्य और हिमवतखंड पर आधारित स्थानीय किंवदंती के अनुसार भगवान शिव एक बार वाराणसी के अन्य देवताओं को छोड़कर बागमती नदी के किनारे स्थित मृगस्थली चले गए,जो बागमती नदी के दूसरे किनारे पर जंगल में है। भगवान शिव वहां पर चिंकारे का रूप धारण कर निद्रा में चले गए। जब देवताओं ने उन्हें खोजा और उन्हें वाराणसी वापस लाने का प्रयास किया तो उन्होंने नदी के दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी। इस दौरान उनका सींग चार टुकडों में टूट गया। इसके बाद भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में प्रकट हुए।
भारतके उत्तराखण्डराज्य में स्थित प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिरकी किंवदंती के अनुसार पाण्डवों को स्वर्गप्रयाण के समय भैंसे के स्वरूप में शिव के दर्शन हुए थे जो बाद में धरती में समा गए लेकिन भीम ने उनकी पूँछ पकड़ ली थी। ऐसे में उस स्थान पर स्थापित उनका स्वरूप केदारनाथ कहलाया, तथा जहाँ पर धरती से बाहर उनका मुख प्रकट हुआ, वह पशुपतिनाथ कहलाया



शनिवार, 29 अगस्त 2015

निष्कलंक महादेव - गुजरात - अरब सागर

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सावन ( आशुतोष ) मास के अठ्ठाईसवेँ दिन में धर्म यात्रा के इस कड़ी मे हम आपको ले चलते है ~ निष्कलंक महादेव - गुजरात - अरब सागर 
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निष्कलंक महादेव - गुजरात - अरब सागर में स्तिथ शिव मंदिर - यहां मिली थी पांडवों को पाप से मुक्ती
गुजरात के भावनगर में कोलियाक तट (Koliyak Beach) से तीन किलोमीटर अंदर अरब सागर में स्तिथ है निष्कलंक महादेव। यहाँ पर अरब सागर की लहरें रोज़ शिवलिंगों का जलाभिषेक करती हैं। लोग पानी में पैदल चलकर ही इस मंदिर में दर्शन करने जाते है। इसके लिए उन्हें ज्वार (Tide) के उतरने का इंतज़ार करना पड़ता है। भारी ज्वार (Heavy Tide) के वक़्त केवल मंदिर की पताका और खम्भा ही नजर आता है। जिसे देखकर कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता की पानी की नीचे समुंद्र मैं महादेव का प्राचिन मंदीर स्तिथ हैं। यहाँ पर शिवजी के पांच स्वयंभू शिवलिंग हैं।
पांडवो को लिंग रूप में भगवान शिव ने दिए थे दर्शन :
इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। महाभारत के युद्ध में पांडवों ने कौरवो को मारकर युद्ध जिता। लेकिन युद्ध समाप्ति के पशचात पांडव यह जानकार बड़े दूखी हूए की उन्हें अपने ही सगे-सम्बन्धियों की हत्या का पाप लगा है। इस पाप से छुटकारा पाने के लिए पांडव, भगवन श्री कृष्ण से मिले।पाप से मुक्ति के लिए श्री कृष्ण ने पांण्डवों को एक काला ध्वज ओर एक काली गाय सौपी और पांडवों को गाय का अनुसरण करने को कहा तथा बताया कि जब ध्वजा और गाय दोनों का रंग काले से सफ़ेद हो जाए तो समझ लेना की तुम्हे पाप से मुक्ति मिल गई है। साथ ही श्रीकृष्ण ने उनसे यह भी कहा कि जिस जगह ऐसा हो वहां पर तुम सब भगवन शिव की तपस्या भी करना।
पांचो भाई भगवान श्री कृष्ण के कथनानुसार काली ध्वजा हाथ में लिए काली गाय का अनुसरण करने लगे। इस क्रम में वो सब कई दिनों तक अलग अलग जगह गए लेकिन गाय और ध्वजा का रंग नहीं बदला। लेकिन जब वो वर्तमान गुजरात में स्तिथ कोलियाक तट पार पहुंचे तो गाय और ध्वजा का रँग सफ़ेद हो गया। इससे पांचो पांडव भाई बहुत खुश हुए और वही पर भगवान शिव का ध्यान करते हुए तपस्या करने लगे।
भगवान भोले नाथ उनकी तपस्या से खुश हुए ओर पांचो भाइयों को लिंग रूप में अलग-अलग दर्शन दिए। वही पांचो शिवलिंग अभी भी वही स्तिथ हैं। पांचो शिवलिंग के सामने नंदी की प्रतीमा भी हैं। पाँचों शिवलिंग एक वर्गाकार चबूतरे पर बने हुए है। तथा यह कोलियाक समुद्र तट से पूर्व की औऱ 3 किलोमीटर अंदर अरब सागर में स्तिथ है। इस चबूतरे पर एक छोटा सा पानी का तालाब भी हैं जिसे पांडव तालाब कह्ते हैं। श्रदालु पहले उसमे अपने हाथ पाँव धोते है और फिर शिवलिंगो की पूजा अर्चना करते है।
भादवे महीने की अमावस क़ो भरता है भाद्रवी मेला :
चुकी यहाँ पर आकर पांडवो को अपने भाइयों के कलंक से मुक्ति मिली थी इसलिए इसे निष्कलंक महादेव कहते है। भादवे महीने की अमावस को यहां पर मेला भरता है जिसे भाद्रवी (Bhadarvi) कहा जाता है।
प्रत्येक अमावस के दिन इस मंदिर में भक्तों की विशेष भीड़ रहती है। हालांकि पूर्णिमा और अमावस के दीन ज्वार अधिक सक्रिय रहता है फिर भी श्रद्धालु उसके ऊतर जाने इंतज़ार करते है और फिर भगवान शिव का दर्शन करते है।
लोगो की ऐसी मान्यता है कि यदि हम अपने किसी प्रियजन की चिता कि राख शिवलिंग पर लगाकार जळ में प्रवाहीत कर दें तो उसको मोक्ष मिल जाता है। मंदिर में भगवान शिव को राख़, दूध, दही और नारियल चढ़ाये जाते है।
सालाना प्रमुख मेला 'भाद्रवी' भावनगर के महाराजा के वंशजो के द्वारा मंदिर कि पताका फहराने से शुरू होता है और फिर यही पताका मंदिर पर अगले एक साल तक फहराती है। और यह भी एक आश्चर्य की बात है की साल भर एक ही पताका लगे रहने के बावज़ूद कभी भी इस पताका को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। यहाँ तक की 2001 के विनाशकारी भूकम्प में भी नहीं जब यहाँ 50000 लोग मारे गए थे।
यदि आप वंडर ऑफ़ नेचर देखने के शौकिन हैं तो यह आप के लिए एक दम सही जगह हैं और यदि आपकी भोलेनाथ में आस्था हैं तो यह जगह आपके लिए जन्नत से कम नहीं हैं।


श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम्


श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम्

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम: शिवाय।।1।।
जो शिव नागराज वासुकि का हार पहिने हुए हैं, तीन नेत्रों वाले हैं, तथा भस्म की राख को सारेशरीर में लगाये हुए हैं, इस प्रकार महान् ऐश्वर्य सम्पन्न वे शिव नित्यअविनाशी तथा शुभहैं। दिशायें जिनके लिए वस्त्रों का कार्य करती हैं, अर्थात् वस्त्र आदि उपाधि से भी जो रहितहैं; ऐसे निरवच्छिन्न उस नकार स्वरूप शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।
 मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय, नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय, तस्मै मकाराय नम: शिवाय।।2।। 
जो शिव आकाशगामिनी मन्दाकिनी के पवित्र जल से संयुक्त तथा चन्दन से सुशोभित हैं,और नन्दीश्वर तथा प्रमथनाथ आदि गण विशेषों एवं षट् सम्पत्तियों से ऐश्वर्यशाली हैं, जोमन्दारपारिजात आदि अनेक पवित्र पुष्पों द्वारा पूजित हैं; ऐसे उस मकार स्वरूप शिव कोमैं नमस्कार करता हूँ।
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय, तस्मै शिकाराय नम: शिवाय।।3।।
जो शिव स्वयं कल्याण स्वरूप हैं, और जो पार्वती के मुख कमलों को विकसित करने के लिएसूर्य हैं, जो दक्षप्रजापति के यज्ञ को नष्ट करने वाले हैं, नील वर्ण का जिनका कण्ठ है, औरजो वृषभ अर्थात् धर्म की पताका वाले हैं; ऐसे उस शिकार स्वरूप शिव को मैं नमस्कार करताहूँ।
 वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय, तस्मै वकाराय नम: शिवाय।।4।।
 वसिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि श्रेष्ठ मुनीन्द्र वृन्दों से तथा देवताओं से जिनका मस्तकहमेशा पूजित है, और जो चन्द्रसूर्य  अग्नि रूप तीन नेत्रों वाले हैं; ऐसे उस वकार स्वरूपशिव को मैं नमस्कार करता हूँ।।
 यक्षस्वरूपाय जटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय, तस्मै यकाराय नम: शिवाय।।5।।
जो शिव यक्ष के रूप को धारण करते हैं और लंबीलंबी खूबसूरत जिनकी जटायें हैं, जिनकेहाथ में पिनाक धनुष है, जो सत् स्वरूप हैं अर्थात् सनातन हैं, दिव्यगुणसम्पन्नउज्जवलस्वरूप होते हुए भी जो दिगम्बर हैं; ऐसे उस यकार स्वरूप शिव को मैं नमस्कारकरता हूँ।
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं : पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।6।।

जो भक्त भगवान् शंकर के सन्निकट इस पवित्र पञ्चाक्षर स्तोत्र का पाठ करता है, वहशिवलोक को प्राप्त करके भगवान् शंकर के साथ आनन्द प्राप्त करता है