रविवार, 23 अगस्त 2015

पांडवों ने प्रायश्चित करने के लिए भगवान शिव की थी आराधना

यहाँ  पांडवों को उनके द्वारा युद्ध में की गई हत्याओं के लिए प्रायश्चित करने के लिए भगवान शिव की थी आराधना
गुप्तकाशी प्रसिद्ध तीर्थ धाम केदारनाथ को यातायात से जोड़ने वाले रुद्रप्रयाग-गौरीकुण्ड राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित एक कस्बा है। यह उत्तराखंड राज्य में रुद्रप्रयाग जिला में स्थित है। गुप्तकाशी क्षेत्र केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव भी है साथ ही यहां कई खूबसूरत पर्यटक स्थल भी हैं। इस स्थान के पौराणिक सन्दर्भ भी हैं, जो इसके नाम के बारे में बताते हैं। इस जगह का नाम गुप्तकाशी इसलिए पड़ा कि पांडवों को देखकर भगवान शिव वहीं छुप गए थे।
गुप्तकाशी से भगवान शिव की तलाश करते हुए पांडव गौरीकुंड तक जाते हैं। लेकिन इसी जगह एक बड़ी विचित्र बात होती है। पांडवों में से नकूल और सहदेव को दूर एक सांड दिखाई देता है। भीम अपनी गदा से उस सांड को मारने दौड़ते हैं। लेकिन वह सांड उनकी पकड़ में नहीं आता है। भीम उसके पीछे दौड़ते हैं और एक जगह सांड बर्फ में अपने सिर को घुसा देता है। भीम पूंछ पकड़कर खींचते हैं। लेकिन सांड अपने सिर का विस्तार करता है। सिर का विस्तार इतना बड़ा होता है कि वह नेपाल के पशुपति नाथ तक पहुंचता है। पुराण के अनुसार पशुपतिनाथ भी बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। देखते ही देखते वह सांड एक ज्योतिर्लिंग में बदल जाता है। फिर उससे भगवान शिव प्रकट होते हैं। भगवान शिव का साक्षात दर्शन करने के बाद पांडव अपने पापों से मुक्त होते हैं
मान्यताएं - 
गुप्तकाशी के सम्बन्ध में अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं , एक मान्यता के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद भगवान् श्री कृष्ण एवं अन्य महर्षियों ने पांडवों को उनके द्वारा युद्ध में की गई हत्याओं के लिए प्रायश्चित करने का परामर्श दिया,पांडवों ने इसका उपाय पूछा तो उन्हें भगवान आशुतोष श्री शिवजी की आराधना करने को कहा गया क्योंकि वही उन्हें उनके पापों से मुक्ति प्रदान कर सकते थे l पांडवों ने ऐसा ही किया किन्तु शिव जी पांडवों से कुरुक्षेत्र के महाभारत युद्ध के कारण कुपित थे इसलिए पांडवों के समक्ष प्रकट नहीं होना चाहते थे l पांडवों की दृष्टि से ओझल होने के लिए शिवजी ने नंदी बैल का रूप धारण कर लिया ताकि पांडव उन्हें न तो ढूंढ सकें न ही पहचान सकें l पांडवों ने शिव जी को ढूँढने का बहुत प्रयास किया किन्तु शिवजी गुप्त रूप से इस स्थान (गुप्तकाशी) पर आकर छुप गए l अन्ततोगत्वा पांडवों ने यंहा आकर नंदी बैल के रूप में छिपे शिवजी को पहचान लिया और उन्हें पकड़ना चाहा शिवजी ने यह जानकर दौड़ने का प्रयास किया किन्तु भीम ने नंदी बैल रूपी शिव के पिछले दोनों पांव कास कर पकड़ लिए,शिवजी स्वयं पृथ्वी (जमीन) पर बनी एक गुफा में प्रवेश कर गए किन्तु अपने शरीर का पिछला भाग वे भीम से छुड़ा न पाए और बाद में पांच विभिन्न स्थानों पर शरीर के भिन्न भागों के रूप में प्रकट हुए ये पांच स्थान अब पंच केदार के के रूप में विख्यात हैं जन्हा शिवजी की पूजा उनके विभिन्न अंगो के रूप में की जाती है पांडवों ने केदारनाथ से पूर्व उत्तरकाशी में भगवन शिव की आराधना की l गुप्तकाशी में भगवन शिव के अंतर्ध्यान/ गुप्त हो जाने के कारण ही यह स्थान गुप्तकाशी कहलाया l

एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने गुप्तकाशी में देवी पार्वती जी के समक्ष गोपनीय रूप से विवाह का प्रस्ताव रखा था इसलिए इस स्थान को गुप्तकाशी कहा गया किन्तु इस मान्यता में विद्वानों में मतभेद है कुश लोग शिव पार्वती के इस प्रसंग को गौरीकुंड से सम्बंधित मानते हैं
इतिहासकारों की मान्यता के अनुसार सन 1669 में जब मुग़ल सम्राट औरंगजेब ने वाराणसी स्थित काशी विस्वनाथ मंदिर को विध्वंस करना चाहा तो हिन्दुओं ने काशी विश्वनाथ के ज्योतिर्लिंग को सुरक्षित रखने के लिए उसे गुप्त रूप से वाराणसी (काशी) से यंहा स्थानांतरित कर दिया तथा यंही उनके गुप्त रूप से पूजा अर्चना की गई इसलिए इस स्थान का नाम गुप्तकाशी पड़ गया l

गुप्तकाशी में भगवान शिव का विशाल एवं भव्य मंदिर है जिसे विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है, इस प्रमुख मंदिर के पास ही अर्धनारीश्वर मंदिर है जंहा शिव पार्वती दोनों के दर्शन एक ही विग्रह में होते हैं, शिवजी के द्वारा पार्वतीजी से विवाह के प्रस्ताव से सम्बंधित प्रसंग को इस मंदिर से यदि जोड़ा जाये तो इस तथ्य को कुछ प्रामाणिकता प्राप्त होती है l इन प्रमुख मंदिरों के अतिरिक्त गुप्तकाशी के चारों ओर अनेक शिवालय हैं जंहा शिवलिंग प्रतिष्ठापित हैं स्थानीय लोगों में इस सम्बन्ध में एक कहावत प्रचलित है कि " जितने पत्थर उतने शंकर " l

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