शनिवार, 29 अगस्त 2015

बूढ़ा अमरनाथ के दर्शन बिना अमरनाथ यात्रा अधूरी

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सावन { आशूतोष } मास के अन्तिम पड़ाव एवं पूर्णमासी
के इस धर्मयात्रा पर आपको ले चलते है ~
बूढ़ा अमरनाथ ~ पूँछ
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बूढ़ा अमरनाथ के दर्शन बिना अमरनाथ यात्रा अधूरी
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कितनी आश्चर्य की बात है कि हिन्दुओं का धार्मिक स्थल होने के बावजूद भी इसके आसपास कोई हिन्दू घर नहीं है और इस मंदिर की देखभाल आसपास रहने वाले मुस्लिम परिवार तथा सीमा सुरक्षा बलके जवान ही करते हैं। बूढ़ा अमरनाथ से जुड़ी कुछ रोचक कथाएं :~
पाकिस्तानी क्षेत्र से तीन ओर से घिरी सीमावर्ती पुंछ घाटी के उत्तरी भाग में पुंछ कस्बे से 23 किमी की दूरी पर स्थित बूढ़ा अमरनाथ का मंदिर सांप्रदायिक सौहार्द की कथा भी सुनाता है, जो इस क्षेत्र में है।
वैसे यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव ने कश्मीर में स्थित अमरनाथ की गुफा में माता पार्वती को जो कथा सुनाई थी अमरता की उसकी शुरुआत बूढ़ा अमरनाथ के स्थान से ही हुई थी और अब यह मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शनों के बिना अमरनाथ की कथा ही नहीं बल्कि अमरनाथ यात्रा भी अधूरी है।अन्य सभी शिव मंदिरों से भिन्न है मंदिरों की नगरी जम्मू से 246 किमी की दूरी पर स्थित पुंछ घाटी के राजपुरा मंडी क्षेत्र जहां तक पहुंचने के लिए किसी प्रकार की पैदल यात्रा नहीं करनी पड़ती है और जिसके साथ ही कश्मीर का क्षेत्र तथा बहुत ही खूबसूरत लोरन घाटी लगती है, में स्थित बाबा बुड्डे अमरनाथ मन्दिर की यात्रा एक पवित्र यात्रा है यह पवित्र तीर्थ स्थान की यात्रा के संबध में बहुत सी कथायें प्रसिद्ध है .जिस में एक है  
महान पुलत्स्य ऋषि, प्रति वर्ष बाबा अमरनाथ के दर्शन करने कश्मीर घाटी जाये करते थे अत्यंत बुद्ध हो जाने के कारण जब बह बाबा अमरनाथ के दर्शन करने नहीं जा सके तो हिम स्वरूप बाबा अमरनाथ ने स्वयं प्रकट होकर ऋषि को उनकी तपस्थली { राजपुर मंडी } में पुल्स्थ नदी के किनेरे दर्शन दिये थे . कालान्तर में सुन्दर लोरन घाटी की महारानी की कथा भी इस में जुड़ गई. घटना ऐसी है की महारानी चंद्रकांता जो भगवन की अनन्य भक्तिन थी कश्मीर मे हिम से स्वनिर्मित शिवलिंग के दर्शन करने प्रतिवर्ष आया करती थी एक बार जब कश्मीर में परिस्थियाँ अनुकूल नहीं थी और यात्रा का समय समीप रहा था .तब महारानी यह सोचकर की भीषण परिस्थियों के रहते  हुए महारानी चंदार्कंता ने अमर व्रत रखा और प्रतिपल वह भगवन अमरनाथ का  नाम जपने लगी. तपस्या मे लीन महारानी चंदार्कंता को एक बूढ़े साधू ने जिनके हाथ में एक पवित्र छड़ी थीं दर्शन दिये और कहा में तुम्हे अमरनाथ महादेव के दर्शन कराउंगा उन्होंने महारानी को बताया की लोरन में अढाई कोस निचे ., पुल्स्ती नदी के तट पर श्री अमरनाथ महादेव के पवित्र और दिव्य दर्शन प्राप्त किये जा सकते है महारानी उन बूढ़े साधू के नेतुत्व में अपने साथियो को लेकर उस स्थान तक आयी और साधू के निदेंश से एक स्थान पर श्री अमरनाथ महादेव की पूजा में लीन  होकर बैठ गई जैसे ही महारानी समाधी में पहुची कहते है की वह वुद्ध  साधू जहा खड़े थे वही पर धरती में लुप्त हो गए बहुत ढूढने के पशचात भी  साधू का कहीं पता नहीं चला सभी को विशवास हो गया की कोई और होकर स्वयं महादेव ही थे ,भगवान शंकर ने प्रकट होकर स्वयं दर्शन दिये है साधू के लोप होने के साथ पर सफाई खुदाई की गई तो शवेत  मरमरी शिवलिंग स्वरुप चट्टान प्रकट हुई तभी से यह पवित्र स्थान बूढ़े अमरनाथ बाबा चट्टानी के नाम से प्रसिद्द है .श्री बुढा अमरनाथ महादेव का मंदिर इस इलाके के निवासिओ के लिए अत्यनत पवित्र स्थान है यहाँ रहने वाले लोगो हर साल नई फसल तैयार होने पर पहले कुछ अनाज महादेव को भेट करते है कहा जाता है की डोगरों के शासन काल में कुछ स्वार्थी तत्वों ने इस स्थान को नुकसान पहुचने की कोशिश की थी इस कारण  क्षेत्र में महामारी फैल गयी बचे हुए लोगो ने महादेव का पूजन प्रारंभ किया तब शान्ति मिली .. 1965 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हो रहा था तब भी पाकिस्तान सेना ने कब्जा करके इस शिवलिंग को तोड़ने का प्रयास किया था इसमें भी वे सफल नहीं हो सके और शिव की कृपा से विजयश्री भारतीय सेना को मिली . श्री बुढा अमरनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग शवेत चकमक { स्फटिक } पत्थर का है जो बर्फ की तरह ही चमकता है यह चट्टान रूपी शिवलिंग पुल्स्ती नदी से 200 फीट ऊपर है .  शवेत बर्फ रूपी शिवलिंग को छोड़कर अन्यत्र शवेत पत्थर कही भी पाया नहीं जाता
सभी अन्य शिव मंदिरों से यह पूरी तरह से भिन्न है।
मंदिर की चारदीवारी पर लकड़ी के काम की नक्काशी की गई है जो सदियों पुरानी बताई जाती है। कहा जाता है कि भगवान शिव द्वारा सुनाई जाने वाली अमरता की कथा की शुरूआत भी यहीं से हुई थी।
पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला के कदमो में ही स्थित मंदिर के आसपास के पहाड़ साल भर बर्फ की सफेद चादर से ढंके रहते हैं, जो हमेशा ही एक अद्धभुत नजारा प्रस्तुत करते हैं। मंदिर के अन्दर आने से मन को शान्ति मिलती है बाबा बुड्डा अमरनाथ के दर्शन करने वाले दर्शनार्थियों की हर मनोकामना पूरण होती है यात्रा श्रवण मास में शुरु होती है परन्तु बाबा बूढ़े अमरनाथ के दर्शन हम किसी भी समय कर सकते है . वेसे तो हजारो वर्षो से कश्मीर घटी में चली रही पवित्र श्री अमरनाथ यात्रा की ही भांति मंडी पूँछ में बसे बाबा बुड्डा अमरनाथ की यात्रा भी परम्परागत रूप से सावन मास में होती थी और मान्यता भी यही है की बुढा अमरनाथ की यात्रा किया बिना बाबा अमरनाथ की यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती जिस तहरा माता विष्णो देवी के दर्शन के बाद अगर कोई बाबा भरो के दर्शन नहीं करता तो उस की यात्रा पूर्ण नहीं होती ठीक उसी तहरा आतंक वादियों के कहर ने इस यात्रा को सिर्फ दो या तीन दिन है कर दिया था पर आज यह यात्रा जम्मू कश्मीर की ही बल की राष्ट्र की यात्रा बन चुकी है और हर साल लाखो की संख्या में बाबा शिव के भकत यहाँ पर रहे है मंदिर के एक ओर लोरन दरिया भी बहता है जिसे पुलस्तयादरिया भी कहा जाता है, जिसका पानी बर्फ से भी अधिक ठंडक लिए रहता है।
सनद रहे कि पुंछ कस्बे का पहला नाम पुलस्तय ही था। बर्फ से ढंके पहाड़, किनारे पर बहता शुद्ध जल का दरिया तथा चारों ओर से घिरे ऊंचे-ऊंचे पर्वतों के कारण यह रमणीक स्थल हिल स्टेशन से कम नहीं माना जाता है।
राजपुरा मंडी तक जाने के लिए चंडक से रास्ता जाता है जो जम्मू से 235 किमी की दूरी पर है तथा जम्मू-पुंछ राजमार्ग पर पुंछ कस्बे से 11 किमी पहले ही चंडक आता है। बूढ़ा अमरनाथके दर्शनार्थ आने वाले किसी धर्म, मजहब, जाति या रंग का भेदभाव नहीं करते हैं। इसकी पुष्टि इससे भी होती है कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र में स्थित इस मंदिर की रखवाली मुस्लिम ही करते हैं।
सिर्फ राजौरी-पुंछ से ही नहीं बल्कि देश भर से लोग चकमक पत्थर के लिंग के रूप में विद्यमान भगवान शिव के दर्शनार्थ इस मंदिर में आते हैं, जबकि विभाजन से पहले पाकिस्तान तथा पाक अधिकृत कश्मीर से आने वालों का तांता भी लगा रहता था जो पुंछ कस्बे से मात्र तीन किमी की दूरी पर ही है।
जिस प्रकार कश्मीर में स्थित अमरनाथ गुफा में श्रावण पूर्णिमा के दिन जब रक्षा बंधन का त्योहार होता है प्रत्येक वर्ष मेला लगता है, ठीक उसी प्रकार इस पवित्र स्थल पर भी उसी दिन उसी प्रकार का एक विशाल मेला लगता है और अमरनाथ यात्रा की ही भांति यहां भी यात्रा की शुरुआत होती है और उसी प्रकार छड़ी मुबारकरवाना की जाती है।कैसे होती है यहां यात्रा की शुरुआत त्रयोदशी के दिन पुंछ कस्बे के दशनामी अखाड़े से इस धर्मस्थल के लिए छड़ी मुबारक की यात्रा आरंभ होती है। पुलिस की टुकड़ियां इस चांदी की पवित्र छड़ी को, उसकी पूजा के उपरांत, गार्ड ऑफ आनर देकर इसका आदर-सम्मान करती हैं और फिर अखाड़े के महंत द्वारा पुंछ से मंडी की ओर जुलूस के रूप में ले जाई जाती है। इस यात्रा में हजारों साधु तथा श्रद्धालु भी शामिल होते हैं, जो भगवान शिव के लिंग के दर्शन करने की इच्छा लिए होते हैं। हालांकि हजारों लोग पूर्णिमा से पहले भी सालभर लिंग के दर्शन करते रहते हैं।
भगवान के लिंग के रूप में दर्शन करने से पहले श्रद्धालू लोरन दरिया में स्नान करके अपने आप को शुद्ध करते हैं और फिर भगवान के दर्शन करके अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतू वरदान मांगते हैं। मंदिर के भीतर भगवान शिव-पार्वती की मनमोहक मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं।
बताया जाता है कि जिस चकमक पत्थर से शिवलिंग बना हुआ है उसकी ऊंचाई करीब साढ़े पांच फुट है मगर उसका कुछ ही भाग ऊपर दिखाई देता है। यह भी कहा जाता है कि मेहमूद गजनबी ने अपने लूटपाट अभियान के दौरान इस मंदिर को आग लगा दी थी, लेकिन यह लिंग उसी प्रकार बना रहा था और यह भी कथा प्रचलित है कि बूढ़ा अमरनाथके दर्शनों के बिना कश्मीर के अमरनाथ के दर्शन अधूरे माने जाते हैं।

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