बुधवार, 19 अगस्त 2015

भगवान शिव




भगवान शिव

भगवान शिव को आदि देव माना जाता है। हिन्दू मान्यतानुसार भगवान शिव संहार करने वाले माने जाते हैं। जो इस संसार में आता है उसे जाना भी होता है और भगवान शिव इसी कार्य के कर्ता माने जाते हैं। शिव है धर्म की जड़। शिव से ही धर्मअर्थकाम और मोक्ष है।सभी जगत शिव की ही शरण में हैजो शिव के प्रति शरणागत नहीं है वह प्राणी दुख के गहरे गर्त में डूबता जाता है ऐसा पुराण कहते हैं। जाने-अनजाने शिव का अपमान करने वाले को प्रकृ‍ति कभी क्षमा नहीं करती है।
''शिव का द्रोही मुझे स्वप्न में भी पसंद नहीं''ऐसा भगवान राम ने कहा है |

शिव का रूप : शिव यक्ष के रूप को धारण करते हैं और लंबी-लंबी खूबसूरत जिनकी जटाएँ हैंजिनके हाथ में पिनाक’ धनुष हैजो सत् स्वरूप हैं अर्थात् सनातन हैंयकार स्वरूप दिव्यगुणसम्पन्न उज्जवलस्वरूप होते हुए भी जो दिगम्बर हैं। जो शिव नागराज वासुकि का हार पहिने हुए हैंवेद जिनकी बारह रुद्रों में गणना करते हैंपुराण उन्हें शंकर और महेश कहते हैं उन शिव का रूप विचित्र है। अर्धनग्न शरीर पर राख या भभूत मलेजटाधारीगले में रुद्राक्ष और सर्प लपेटेतांडव नृत्य करते हैं तथा नंदी जिनके साथ रहता है। उनकी भृकुटि के मध्य में तीसरा नेत्र है। वे सदा शांत और ध्यानमग्न रहते हैं। इनके जन्म का अता-पता नहीं हैं। वे स्वयंभू माने गए हैं।

भगवान शिव का मंत्र 
"ऊँ नम शिवाय" यह षडक्षर मंत्र सभी दुख दूर करने वाला मंत्र माना गया है। 
"ऊँ" भगवान शिव का एकाक्षर मंत्र हैं। 
"नम शिवाय" भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र है।

भगवान शिव का परिवार 
शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव के दो विवाह हुए। दोनों ही बार उनका विवाह भगवती के अवतारों से हुआ। पहला राजा दक्ष की पुत्री सती के साथ और दूसरा हिमालय पुत्री देवी पार्वती के साथ। शिवजी के दो पुत्र माने गए हैं कार्तिकेय और भगवान गणेश। कई जगह शिवांशों यानि शिव के अंशो का वर्णन किया गया जिनमें अंधक नामक शिवांश सबसे प्रमुख हैं। 

शिव महिमा : शिव ने कालकूट नामक विष ‍पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर को जो वरदान दिया था उसके जाल में वे खुद ही फँस गए थे। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा को शापित कर विष्णु को वरदान दिया था। शिव की महिमा का वर्णन पुराणों में मिलता है।

शिव के प्रमुख नाम : शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहाँ प्रचलित नाम जानें- महेशनीलकंठमहादेवमहाकालशंकरपशुपतिनाथगंगाधरनटराजत्रिनेत्रभोलेनाथआदिदेवआदिनाथत्रियंबकत्रिलोकेशजटाशंकरजगदीशप्रलयंकरविश्वनाथविश्वेश्वरहरशिवशंभुभूतनाथ और रुद्र।

शिवलिंग : विश्व कल्याण के लिए भगवान शिव संसार में शिवलिंग के रूप में विद्यमान हैं। भारत में कई जगह शिवलिंग पाए जाते हैं। भारत में बारह अहम ज्योतिर्लिंग हैं जहां भोलेनाथ शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं।

ज्योतिर्लिंग : ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएँ प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंगजिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्ममायाजीवमनबुद्धिचित्तअहंकारआकाशवायुअग्निजल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।
दूसरी मान्यता अनुसार विक्रम संवत के कुछ सहस्राब्‍दी पूर्व उल्कापात का अधिक प्रकोप हुआ। आदि मानव को यह रुद्र का आविर्भाव दिखा। शिव पुराण के अनुसार उस समय आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। कहते हैं कि मक्का का संग-ए-असवद भी आकाश से गिरा था। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया। । 

बारह ज्योतिर्लिंग : (1) सोमनाथ, (2) मल्लिकार्जुन, (3) महाकालेश्वर, (4) ॐकारेश्वर, (5) वैद्यनाथ, (6) भीमशंकर, (7) रामेश्वर, (8) नागेश्वर, (9) विश्वनाथजी, (10) त्र्यम्बकेश्वर, (11) केदारनाथ, (12) घृष्णेश्वर।

शिव निवास : ति‍ब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर प्रारम्भ में उनका निवास रहा। वैज्ञानिकों के अनुसार तिब्बत धरती की सबसे प्राचीन भूमि है और पुरातनकाल में इसके चारों ओर समुद्र हुआ करता था। फिर जब समुद्र हटा तो अन्य धरती का प्रकटन हुआ। जहाँ पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है। ऐसा पुराण कहते हैं।

काशी : मान्यतानुसार भगवान शिव का निवास कैलाश पर्वत पर है। लेकिन उनकी प्रिय नगरी है काशी। पुराणों के अनुसार काशी के कण-कण में शिव विराजमान हैं। 

भगवान शिव की प्रिय वस्तुएं :
रुद्राक्ष : भगवान शिव के आभूषणों में रुद्राक्ष का अहम महत्व है। मान्यता है कि त्रिपुरासुर नामक राक्षस के वध के बाद भगवान शिव के नेत्रों से गिरे अश्रु बिन्दुओं से वृक्ष उत्पन्न हुए और रुद्राक्ष के नाम से प्रसिद्ध हुए।
भस्म : भगवान भोलेनाथ भस्मी में रमते हैं। मान्यता है कि शिवजी की पूजा भस्म के बिना पूर्ण नहीं होती। 
बेलपत्र : भगवान शंकर का एक नाम भोलेनाथ भी है क्योंकि वह बहुत जल्दी किसी की भी मनोकामना पूर्ण कर देते हैं। उनकी पूजा में छत्तीस भोग नहीं लगते वह तो मात्र भांगधतूरे और बेलपत्र के चढ़ावे से प्रसन्न हो जाते हैं

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