सिद्धनाथ महादेव मंदिर
धर्मयात्रा की इस कड़ी में हम आपको ले चलते हैं पुण्य
सलिला नर्मदा के किनारे बसे नगर नेमावर के प्राचीन सिद्धनाथ महादेव के
मंदिर। महाभारतकाल में नाभिपुर के नाम से प्रसिद्ध यह नगर व्यापारिक केंद्र हुआ
करता था मगर अब यह पर्यटन स्थल का रूप ले रहा है। राज्य शासन के रिकॉर्ड में इसका
नाम 'नाभापट्टम' था। यहीं पर नर्मदा
नदी का 'नाभि' स्थान है।
सिद्धनाथ महादेव मंदिर मध्य प्रदेश के देवास ज़िले में नेमावार नामक ग्राम में स्थित है। माना
जाता है कि मंदिर के शिवलिंग की स्थापना चार ऋषियों ने मिलकर की थी। नर्मदा नदी के तट पर स्थित यह
मंदिर हिन्दू आस्था का प्रमुख
केन्द्र है। 11वीं सदी में चंदेल तथा परमार राजाओं ने इस मंदिर का
जीर्णोद्धार कार्य करवाया था। मंदिर की स्थापत्य कला देखने लायक है।
हिन्दू और जैन पुराणों में नेमावार का कई बार उल्लेख हुआ
है। इसे सब पापों का नाश कर सिद्धिदाता तीर्थ स्थल माना गया है। महाभारत काल में नेमावार 'नाभिपुर' के नाम से प्रसिद्ध नगर तथा व्यापारिक केंद्र हुआ करता था। अब यह नगर
पर्यटन स्थल का रूप ले रहा है। राज्य शासन के रिकॉर्ड में इसका नाम 'नाभापट्टम' था। यहीं पर नर्मदा नदी का 'नाभि' स्थान है। सिद्धनाथ महादेव मंदिर नेमावार का
प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है।[1]
किंवदंती
किंवदंती है कि सिद्धनाथ महादेव मंदिर के शिवलिंग की स्थापना चार सिद्ध ऋषि- 'सनक', 'सनन्दन', 'सनातन' और 'सनत कुमार' ने सतयुग में की थी। इसी कारण इस
मंदिर का नाम सिद्धनाथ है। इसके ऊपरी तल पर 'ओमकारेश्वर'
और निचले तल पर 'महाकालेश्वर' स्थित हैं। श्रद्धालुओं का ऐसा भी मानना है कि जब सिद्धेश्वर महादेव
शिवलिंग पर जल अर्पण किया जाता है,
तब 'ओम' शब्द की प्रतिध्वनि
उत्पन्न होती है।
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यह मान्यता भी है कि मंदिर के शिखर का निर्माण 3094 वर्ष ईसा
पूर्व किया गया था। द्वापर युग में कौरवों द्वारा इस मंदिर को
पूर्वमुखी बनाया गया था, जिसको पांडव पुत्र भीम ने अपने बाहुबल से पश्चिम
मुखी कर दिया था।[1]
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एक किंवदंती यह भी है कि सिद्धनाथ मंदिर के पास नर्मदा तट की
रेती पर सुबह-सुबह पदचिन्ह नजर आते हैं, जहाँ पर कुष्ठ रोगी लोट लगाते हैं। ग्राम के बुजुर्गों का मानना है
कि पहाड़ी के अंदर स्थित गुफ़ाओं, कंदराओं में तपलीन साधु प्रात:काल यहाँ नर्मदा नदी में स्नान करने के लिए आते हैं।
नेमावार के आस-पास प्राचीन काल
के अनेक विशालकाय पुरातात्विक अवशेष मौजूद हैं। नर्मदा के
तट पर स्थित यह मंदिर हिन्दू धर्म की आस्था का प्रमुख
केंद्र है। 10वीं और 11वीं सदी के चंदेलऔर परमार राजाओं ने इस मंदिर का
जिर्णोद्धार किया, जो
अपने-आप में स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। मंदिर को देखने से ही मंदिर की
प्राचीनता का पता चलता है। मंदिर के स्तंभों और दीवारों पर शिव, यमराज, भैरव, गणेश, इंद्राणी और चामुंडा की कई सुंदर मूर्तियाँ
उत्कीर्ण हैं।
स्नान-ध्यान
यहाँ शिवरात्रि, संक्रान्ति, ग्रहण, अमावस्या आदि पर्व पर श्रद्धालु स्नान-ध्यान करने आते हैं। साधु-महात्मा भी पवित्र नर्मदा मैया के
दर्शन का लाभ लेते हैं।
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