सावन ( आशूतोष ) मास के उन्नीसवें दिन नाग
पंचमी शुभपर्व के अवसर पर धर्मयात्रा की इस कड़ी में हम आपको ले चलते हैं ! द्वारका, गुजरात के बाहरी क्षेत्र में स्थित नागेश्वर मन्दिर एक प्रसिद्द मन्दिर है यह शिव जी के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। जो भगवान शिव को समर्पित है। यह द्वारका, गुजरात के बाहरी क्षेत्र में स्थित है। यह शिव जी के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
हिन्दू धर्म के अनुसार
नागेश्वर अर्थात नागों का ईश्वर होता है। यह विष आदि से बचाव का सांकेतिक भी है। रुद्र संहिता में इन भगवान
को दारुकावने
नागेशं कहा गया है।
भगवान् शिव का यह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग गुजरात प्रांत में द्वारका पुरी से लगभग 17 मील की दूरी पर स्थित है। इस पवित्र
ज्योतिर्लिंग के दर्शन की शास्त्रों में बड़ी महिमा बताई गई है। कहा गया है कि जो
श्रद्धापूर्वक इसकी उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनेगा वह सारे पापों से छुटकारा
पाकर समस्त सुखों का भोग करता हुआ अंत में भगवान् शिव के परम पवित्र दिव्य धाम को
प्राप्त होगा।
इस ज्योतिर्लिंग के संबंध में पुराणों यह कथा वर्णित है-
सुप्रिय नामक एक बड़ा धर्मात्मा और सदाचारी वैश्य था। वह
भगवान् शिव का अनन्य भक्त था। वह निरन्तर उनकी आराधना, पूजन और ध्यान में तल्लीन रहता
था। अपने सारे कार्य वह भगवान् शिव को अर्पित करके करता था। मन, वचन, कर्म से वह पूर्णतः शिवार्चन में
ही तल्लीन रहता था। उसकी इस शिव भक्ति से दारुक नामक एक राक्षस बहुत क्रुद्व रहता
था
उसे भगवान् शिव की यह पूजा किसी प्रकार भी अच्छी नहीं लगती
थी। वह निरन्तर इस बात का प्रयत्न किया करता था कि उस सुप्रिय की पूजा-अर्चना में
विघ्न पहुँचे। एक बार सुप्रिय नौका पर सवार होकर कहीं जा रहा था। उस दुष्ट राक्षस
दारुक ने यह उपयुक्त अवसर देखकर नौका पर आक्रमण कर दिया। उसने नौका में सवार सभी
यात्रियों को पकड़कर अपनी राजधानी में ले जाकर कैद कर लिया। सुप्रिय कारागार में
भी अपने नित्यनियम के अनुसार भगवान् शिव की पूजा-आराधना करने लगा।
अन्य बंदी यात्रियों को भी वह शिव भक्ति की प्रेरणा देने लगा।
दारुक ने जब अपने सेवकों से सुप्रिय के विषय में यह समाचार सुना तब वह अत्यन्त
क्रुद्ध होकर उस कारागर में आ पहुँचा। सुप्रिय उस समय भगवान् शिव के चरणों में
ध्यान लगाए हुए दोनों आँखें बंद किए बैठा था। उस राक्षस ने उसकी यह मुद्रा देखकर
अत्यन्त भीषण स्वर में उसे डाँटते हुए कहा- 'अरे दुष्ट वैश्य! तू आँखें बंद कर
इस समय यहाँ कौन- से उपद्रव और षड्यन्त्र करने की बातें सोच रहा है?' उसके यह कहने पर भी धर्मात्मा
शिवभक्त सुप्रिय की समाधि भंग नहीं हुई। अब तो वह दारुक राक्षस क्रोध से एकदम पागल
हो उठा। उसने तत्काल अपने अनुचरों को सुप्रिय तथा अन्य सभी बंदियों को मार डालने
का आदेश दे दिया। सुप्रिय उसके इस आदेश से जरा भी विचलित और भयभीत नहीं हुआ।
वह एकाग्र मन से अपनी और अन्य बंदियों की मुक्ति के लिए भगवान्
शिव से प्रार्थना करने लगा। उसे यह पूर्ण विश्वास था कि मेरे आराध्य भगवान् शिवजी
इस विपत्ति से मुझे अवश्य ही छुटकारा दिलाएँगे। उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान्
शंकरजी तत्क्षण उस कारागार में एक ऊँचे स्थान में एक चमकते हुए सिंहासन पर स्थित
होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए।
उन्होंने इस प्रकार सुप्रिय को दर्शन देकर उसे अपना
पाशुपत-अस्त्र भी प्रदान किया। इस अस्त्र से राक्षस दारुक तथा उसके सहायक का वध
करके सुप्रिय शिवधाम को चला गया। भगवान् शिव के आदेशानुसार ही इस ज्योतिर्लिंग का
नाम नागेश्वर पड़ा।
भगवान शंकर
अपने भक्तों की रक्षा के लिए दारुका वन में ज्योतिर्लिंग नागेश्वर के रूप में
निवास करने लगे। कहा जाता है कि जो इस मंदिर में शिव की उत्पत्ति का माहात्मय
सुनेगा,
वह परमपद प्राप्त करेगा। नागेश्वर मंदिर में मुख्य शिवलिंग मूर्ति
आंतरिक छोटे से गर्भ गृह में पृथ्वी की सतह से नीचे है। वर्तमान में इस मंदिर का
विस्तार व जीर्णोद्धार गुलशन कुमार के ट्रस्ट ने कराया है। मंदिर के समीप ही शिव
जी की 85 फीट ऊंची प्रतिमा भी बनवाई गई है, जो कई किलोमीटर दूर से ही दिखाई देती है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन
के लिए आप द्वारका से आरक्षित आटो रिक्शा करके जा और आ सकते हैं। इसमें आप मंदिर
में अपनी इच्छानुसार पूजा अभिषेक के लिए पूरा समय दे सकते हैं
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