शनिवार, 22 अगस्त 2015

पार्वती तुकेश्वर महादेव मंदिर,इंदौर

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सावन ( आशुतोष ) मास के इक्कीसवेँ दिन में धर्म यात्रा के इस कड़ी मे हम आपको ले चलते है~ 
पार्वती तुकेश्वर महादेव मंदिर, मध्य प्रदेशके इंदौरमें स्थित।
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भगवान शंकरमृत्युलोक के देवतामाने जाते हैं। यहां भगवान शंकर का परिवारगृहस्थ जीवन का सबसे अच्छा उदाहरण है। यह गृहस्थ जीवन से जुड़े हर व्यक्ति को जीवन में विपरीत परिस्थितियों में भी संतुलन और मिलजुल कर रहने की प्रेरणा देता है। इसलिए शिवपरिवार का हर सदस्य माता पार्वती, श्रीगणेश, कार्तिकेयसहित उनके वाहन आदि भी धर्मावलंबियों के बीच पूजित हैं।
{}~ स्थिति ~{}
मध्य प्रदेशके इंदौर ज़िलेमें भगवान शंकर के परिवार की भक्ति को ही समर्पित अत्यंत प्राचीन मंदिर है - पार्वती तुकेश्वर महादेव मंदिर। यह शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है, किंतु वास्तव में यह माता पार्वती का दुर्लभ मंदिर है। देवाधिदेव महादेव को सबसे ज्यादा प्रिय पार्वती जी के मंदिरों की संख्या देशभर में नहीं के बराबर है। यह मंदिर इंदौर के केशरबाग क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर के बारे में शहर में बहुत कम लोगों को जानकारी है।
{}~ मान्यता ~{}
मान्यता है कि इस मंदिर में माता पार्वती, श्री गणेश और महादेव के एक साथ दर्शन से पारिवारिक जीवन के कलह का अंत होता है और दांपत्य सुख प्राप्त होते हैं। माता पार्वती, उनकी गोद में श्री गणेश की मूर्ति और शिवलिंगदर्शन हर गृहस्थ के मन में दांपत्य रिश्तों में समर्पण भावना और संतान के लिए स्नेह का भाव पैदा करते है।
{}~ मुख्य विशेषता ~{}
इस मंदिर की सबसे मुख्य विशेषता है कि माँ पार्वती की बेहद सुंदर सफेद संगमरमर की प्रतिमा, जिसके एक हाथ में कलशहै और गोद में स्तनपान कर रहे बाल गणेशजी हैं, जो जीवंत दिखाई देती है। जबकि ठीक सामने शिवजी लिंगस्वरूप में विद्यमान है। माता पार्वती के ममतामयी और वात्सल्य रुप के दर्शन होते हैं।
{}~ऐतिहासिक तथ्य~{}
इस मंदिर की स्थापना कब हुई, इसका कोई प्रामाणिक इतिहास उपलब्ध नहीं है, लेकिन वहाँ पर लगे पट्ट की मानें तो क़रीब 400 वर्ष पहले इसका निर्माण हुआ था। बाद में लोकमाता देवी अहिल्याबाईने इसका जीर्णोद्धार भी करवाया।
ऐतिहासिक साक्ष्य के मुताबिक 1810 से 1840 के बीच होलकर वंश की केशरबाई ने इसका निर्माण करवाया। यह मंदिर पूर्वमुखी है। पहले इसका बाहरी प्रवेशद्वार भी पूर्वमुखी ही था, जो अब सड़क निर्माण की वजह से पश्चिम मुखी हो गया है। मंदिर की ऊँचाई 75 फुट और चौड़ाई क़रीब 30 फुट है। पूरा मंदिर मराठा, राजपूत और आंशिक रूप से मुग़ल शैली में बनकर तैयार हुआ है। इसकी एक और सबसे बड़ी ख़ासियत माँ पार्वती की अत्यंत सुंदर प्रतिमा है, जो क़रीब दो फुट ऊँची है। प्रतिमा वास्तव में इतनी सुंदर है, जैसे लगता है कि अभी बोल पड़ेगी। मंदिर के ही ठीक सामने कमलाकार प्राचीन फ़व्वारा भी है। वर्तमान में मंदिर का कुल क्षेत्रफल 150 गुणा 100 वर्गफुट ही रह गया है। हर वर्ष श्रावण मासमें विद्वान पंडितों के सान्निध्य में अभिषेक, शृंगार, पूजा-अर्चना आदि अनुष्ठान कराए जाते हैं।
{}~मंदिर का गर्भगृह~{}
मंदिर का गर्भगृह काफ़ी अंदर होने के बावजूद सूर्यनारायण की पहली किरण माँ पार्वती की प्रतिमा पर ही पड़ती है। इसलिए सूर्यके उदय होते ही माता पार्वती पर आने वाला प्रकाश देखकर ऐसा लगता है मानों सूर्यदेवजगतजननी की वंदना कर रहे हों। मंदिर की सुंदरता में चार चाँद लगाता है यहाँ का पीपल वृक्ष। समीप ही प्राचीन बावड़ी भी है जिसे सूखते हुए आज तक किसी ने नहीं देखा। भीषण गर्मी के मौसम में भी यह लबालब रहती है।
{}~ अन्य मंदिर ~{}
पार्वती मंदिर से ही लगे हुए दो और मंदिर भी हैं। एक है राम मंदिर और दूसरा है हनुमान मंदिर। प्राचीन राम मंदिर से ही एक सुरंग भूगर्भ से ही दोनों मंदिरों को जोड़ती है। यह बावड़ीके अंदर भी खुलती है। 

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